१.
जीवन भर
जीवन की किताब के
अपरिचित पाठ्यक्रम के
अपठित अध्याय
बार-बार पढने के बावजूद
बीत जाते हैं हम
उन अध्यायों के
अनुत्तरित प्रश्नों के
उत्तर ढूंढते-ढूंढते
२.
सूरज के आने भर से
नहीं होता
सुबह का होना
न ही नींद से उठ बैठना
सुबह होना है
उठता हूं नींद से
देखने के लिए एक सुबह
एक सुबह देखना चाहती है
मुझे नींद से उठते हुए
३.
हर नदी की किस्मत में
नहीं समंदर
परंतु हर नदी में भरे हैं
अथाह समंदर
सूख जाएं भले ही
रास्ते धार के
पर बहती है
एक धार
अविरल
भीतर
होती हुयी
नदी
४.
झर झर
झर गयी
कुछ भी न रहा शेष
सिवा एक स्मृति के
झरने के
५.
उसके आने में कुछ न था
न ही उसके जाने में
लेकिन
इस आने-जाने के बीच
जो था
वह कभी
किसी
शब्द में नहीं समा पाया
६.
कितने अच्छे दिन थे
जब अच्छे हम थे
अच्छा अच्छा लगता था
सब कुछ
लोग भी थे
अच्छे अच्छे
कितने बदल गए दिन अब
बदल गए हम
बदल गए सब
सारी क्षणिकाएँ गहन बात कह रही हैं ..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर क्षणिकायें, भाव उकसाती।
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