इतना लिखा है
लिखता ही रहा हूं
पर जब भी चाहा
लिखना तुम्हें!
लिख नहीं पाता
एक भी शब्द
शब्दकोश का
टिक नहीं पाता
हर उपमा, प्रतीक, अलंकार
लघुत्तम
जान पड़ते हैं
तुम्हारे लिए
जाने क्या-क्या
कितनी बार
लिखा और मिटाया
शब्द-शब्द कसमसाया
फ़िर भी
सिरे नहीं चढ पाया
तुम में ढल न पाया
इबादत में कैसे आता
जब
इबारत में ही नहीं आया
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteगहन मनन किये शब्द, पहले इबारत, फिर इबादत, बहुत ही सुन्दर।
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