१
संवाद
अक्षर
जब
शब्द होता है
कोई न कोई
अर्थ होता है
शब्द
जब
कहा, सुना,
लिखा, पढा जाता है
कोई न कोई
संवाद राह बनाता है
संवाद
जब होठों पर आता है
मौन हकबका जाता है
२
तुम्हारा मौन
तुम!
और तुम्हारा मौन..
मैं!
और मेरा मैं..
दोनों के बीच
एक अर्थहीन अर्थ
मेरा..तुम्हारा
क्या
हदें
सचमुच
इतना अपरिचित
बना देती है?
दोनों प्रस्तुति लाजवाब
ReplyDeleteबहुत बदिया...
ReplyDeleteसादर..
hridaysparshi rachana
ReplyDeleteकभी मौन बहता है,
ReplyDeleteकभी मौन सहता है।
dono rachnaayen bahut acchi hain
ReplyDeletesunder rachnaayen
ReplyDeleteदोनो रचनाये बेजोड्…………शानदार्।
ReplyDeletebehtareen
ReplyDeleteaap bhi aaiye
Naaz
sunder abhivyakti.
ReplyDeleteदोनों ही रचनाएँ बहुत ही सुन्दर भाव एवं संवाद युक्त हैं....
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