रिश्ते
सिर्फ़
हम दो
हमारे दो
सम्बन्ध
सिर्फ़ उन से
जो काम के हो
समाज
सिर्फ़ वह
जहां अपना कोई न हो
उत्सव
सिर्फ़ वहां
जहां
औपचारिक-अनौपचारिक
आयोजनों के
औपचारिक निमंत्रणों से
भीड़ इकठ्ठा हो
क्या पढा-लिखा
क्या अनपढ
आदमी रहा
आदमी से कट
सारी आत्मीयता, सगापन
रोशनी की जगमगाहटों, शाही टैंटों में
शाही दावत का स्वाद ले
अपने-अपने अंधेरों में
दुबक गया है
आदमी
सिर्फ़
एक शुभकामनाओं सहित
शगुन का लिफ़ाफ़ा
हो कर रह गया है...
*****
रिश्ते कम हों,
ReplyDeleteपर उनमें दम हो।