हो गया कवि
उस अलौकिक ने
रचा मुझे
मैंने-
देखते
समझते हुए
महसूसते हुए
बाहर को
भीतर अपने
दी गयी भाषा में
रचा फ़िर से तुम्हें
अपनी लेखनी से
बाहर
और
हो गया कवि
*****
कविता में.....
मैंने देखा था तुम्हें
पहले पहल
कविता में
फ़िर कविता में
फ़िर फ़िर कविता में
पर देखना बाकी है अभी
कविता है क्या?
कविता में.....
*****
सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteवाह, दोनो ही दमदार।
ReplyDeleteवाह बेहतरीन रचनाएं
ReplyDelete