पी चुके हैं कितनी ही फ़िर भी
प्यास अभी बाकी है
अमावस्या और पूर्णिमा के बीच
विश्वास अभी बाकी है
झूठी वर्जनाओं से
सन्यास अभी बाकी है
अपनी संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण की
तलाश अभी बाकी है
कुछ रिश्तों में
अहसास अभी बाकी है
कहीं न कहीं कुछ
खास अभी बाकी है
बार बार मारे जाने पर भी
जीने की तलब है
इसीलिए तो ज़िंदगी में
सांस अभी बाकी है
बहुत प्रेरक भावपूर्ण प्रस्तुति...जीने के इस ज़ज्बे को सलाम..
ReplyDeleteवाह! जिजीविषा का अमिट हस्ताक्षर इस रचना की सफलता है!
ReplyDelete... behad prabhaavashaalee rachanaa ... behatreen !!!
ReplyDeletejab tak saansen hain ,
ReplyDeletetalaash baki hai....
bahut badhiya
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteयहाँ आपका स्वागत है
गुननाम