बरसों पहले लिखा गीत जैसा कुछ आज हाथ आ गया। उन लेखन-प्रतिभाओं को समर्पित जो हमारी आलोचना-दृष्टि और आलोचकों की वजह से वह स्थान नहीं पा सकी जिसकी वे हकदार थीं...
गीत जैसा कुछ
न देखे कोई नामवर...
न देखे कोई नामवर
तू तो अपना काम कर
शब्द-शब्द कलम से
काल की टंकार भर
हर शब्द जो लिखा
काल की भट्टी पकाए
कालांतर रहे वही
होती जहां संभावनाएं
बीज फ़ूटे, फ़ूले-फ़ले
ज़मीं ऎसी तैयार कर...
इतिहासों के इतिहास में
कितने ही नाम है अनाम
कितनों ही के किए काम
दर्ज हुए औरों के नाम
हो जा खुद खबरदार
सब को खबरदार कर...
न हारे कोई, जीत ऎसा
सबको तारे, सीख ऎसा
लोग पढें सब लिख ऎसा
वेद टिके ज्यों टिक ऎसा
कोई किसी का हक न मारे
जन-जन में हुंकार भर...
सच में ऊर्जा भरता गीत
ReplyDeleteओजस्वी गीत !!
ReplyDeletenamskaar !
ReplyDeletebehad sunder hai kavitaa , badhai
saadar
कोई किसी का हक ना मारे
ReplyDeleteजन-जन में हुंकार भर
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति
कोई किसी का हक ना मारे
ReplyDeleteजन-जन में हुँकार भर...
बहुत सुंदर भावाभिव्यकित