कवि का मन
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24 September, 2011
अक्षर है प्रेम
अक्षर है
प्रेम
क्षरते हैं
प्रेम के आग्रह
प्रेम के आश्रय
आलंब-अवलंब
नहीं होती भाषा
कोई व्याकरण
पाठशाला
प्रेम की....
फ़िर भी
पूरे आवेग के साथ
पढा, पहचाना,
जाना जाता है
व्याप जाता है
प्रेम
जहां भी
होता है
प्रेम!
4 comments:
प्रवीण पाण्डेय
24/9/11 9:46 AM
प्रेम भी अक्षरणीय है।
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Barthwal
24/9/11 9:58 AM
सुंदर प्रेम भाव लिए अक्षर
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vandana gupta
24/9/11 3:10 PM
बहुत खूब्।
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अनुपमा पाठक
16/10/11 3:02 PM
सुंदर!
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प्रेम भी अक्षरणीय है।
ReplyDeleteसुंदर प्रेम भाव लिए अक्षर
ReplyDeleteबहुत खूब्।
ReplyDeleteसुंदर!
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