राह कभी नहीं भूलती
उन कदमों को
जो बनाते हैं उसे राह
हर राह के पास है
एक इतिहास कदमों का
कदम जो चलते हैं
कदम जो राह बनाते हैं
अब कहां रहे कदम
राह बनाने वाले
रह गए सिर्फ़
लीक पीटनेवाले
हाथों में झण्डे वाले
वे कदम चाहते ही नहीं
अपनी कोई राह बनाना
खुद को आज़माना
बस! चले जा रहे हैं
किसी भी राह पर
क्यूं? पता नहीं
कहां? पता नहीं
रह गये सिर्फ
ReplyDeleteलीक पीटने वाले
बिलकुल सही कहा। वो कदम अब नही रहे जो जंगलों मे पक्की सडक से अच्छे रास्ते बना देते थे। आज कंक्रीट की सडकों पर चलते चलते चल्ने का ढंग ही भूल गये। अच्छी लगी रचना। बधाई।
चाह रह नही गई है, कैसे बनेगी "राह"
ReplyDeleteबिन "धुन" बिन "श्रम" सब कुछ पाने की है चाह
न मिल पाये यदि, करने लगता है "आह! आह"!
har raah ke paas hai itihaas kadmon ka....
ReplyDeletewell said!
sundar rachna!!!