कुछ आहटें
कितनी अधिक परिचित होती है
आईने सी
कभी भी कहीं भी
आ धमकती है
सबके सामने
सबके बीच
बेआवाज़
लेकिन
कितना कोलाहल भर देती है
किसी को पता भी नहीं चलता
हम सबके साथ
सबके बीच होते हुए भी
किसी के साथ
किसी के बीच नहीं है
अपनी ही किसी
आहट के बीच,
कितनी आहत के साथ हैं
navneet jee
ReplyDeletenamaaskar !
sunder abhivyakti .
sadhuwad !