जो कहीं नहीं है
ये ककहरे
शब्द
वाक्य
भाषा
पूरी किताब
कुछ भी तो नहीं मेरा
ये संज्ञा
सर्वनाम, विशेषण,
रिश्ते-नाते
भावनाएं-कामनाएं
जीवन-प्रपंचों का
पूरा व्याकरण
यहीं से ही तो मिला
इन सबसे इतर
जो भी है
मेरे भीतर-बाहर
मैं हूं
जो कहीं नहीं है
*****
मेरी आग
वे लगे हैं
हर तरफ़ से
हर तरह से
करने को राख
मेरी आग को
करता रहता हूं जतन
उसे ज्वाला बनाने का
यह जानते हुए कि
बहुत खिलाफ़ है मेरे
हवाओं के रुख
फ़िर भी हूं प्रतिबध्द
देती रहती है
भरोसा मुझे
मेरी आग
*****
sundar kavitayen hain.....badhayi.
ReplyDeleteशब्दों में स्वयं को ढूढ़ने का प्रयास व्यर्थ है, अन्तः ही झाँकना होगा।
ReplyDeleteVishnu Sharma, Neeraj Daiya and 6 others like this.
ReplyDeleteAshvani Sharma badhiya kavitayen
April 14 at 4:58pm · Like
Sara Misra Ati Sundar
April 14 at 5:20pm · Like
Aparna Bhagwat Beautiful expressions Navneetji. Keep the fires burning.
April 14 at 6:49pm · Like
Narpatsingh Udawat gar lagaayi hai kuch soch samajh,
aag vo fir bujhne na do.
April 14 at 9:43pm · Like
Sushila Shivran वाह ! "जो कहीं नहीं है" मर्म को छू गई और "मेरी आग" अलग ही भाव-समुद्र में उठते ज्वार भाटा के बीच! बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति!
Sunday at 12:27pm · Like