जैसी भी है अपनी खुश्बू
कभी नहीं मुरझाता
न ही सूखता
फ़ेंका जाता
कचरे मानिंद
खिला रहता
बिखेरता रहता
अपनी सीमाओं में
जैसी भी है अपनी खुश्बू
अगर तुमने
तोड़ा न होता!
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कभी नहीं मुरझाता
न ही सूखता
फ़ेंका जाता
कचरे मानिंद
खिला रहता
बिखेरता रहता
अपनी सीमाओं में
जैसी भी है अपनी खुश्बू
अगर तुमने
तोड़ा न होता!
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देखना! तुम!
भले ही छीन लो पतवार
छोड़ दो बीच मझधार
खिलाफ़ धार के
फ़िर भी हम
होगें पार
देखना!
तुम!
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खिलाफ़ के खिलाफ़
खिलाफ़ हवाओं के
कब रहा आसान
भरना उड़ान
पाना आसमान
फ़िर भी उड़ता हूं
हवाओं के खिलाफ़
हवाओं के खिलाफ़
आसमान के खिलाफ़
और सारे
खिलाफ़ों के खिलाफ़
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पता चला-
जिन्हें हमेशा मैंने
अपने भीतर
मिश्री सा सहेजे रखा
पता चला-
उन्होंने मुझे
अपने भीतर तो क्या
आस-पास, दूर-दूर भी
नहीं देखा-रखा
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ठीक
सिर्फ़ तुम्हारे
और मेरे मानने से
ठीक नहीं होगा ठीक
ठीक तभी है ठीक
जब सभी मानें ठीक
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